एक निश्चित संख्या कह पाना संभव नहीं है, परंतु गिने-चुने गुरुकुल ही देश में संचालित हो रहे हैं, और उसमें से अधिकतर वास्तव में हमारी प्राचीन गुरुकुल प्रणाली से दूर हो चुके हैं। प्राचीन गुरुकुल प्रणाली मूल रूप से यह थी, कि बच्चा घर का त्याग करके गुरुकुल में अध्ययन करता था। इसलिए हमारे यहाँ विद्यार्थियों के जो पांच लक्षण बताए है उसमें-
“काक चेष्टा, बको ध्यानं, स्वान निद्रा तथैव च । अल्पहारी, गृहत्यागी, विद्यार्थी पंच लक्षणं॥”
विद्यार्थी के जो पांच लक्षण बताए गए हैं, उनमें एक है ‘गृहत्यागी’। आजकल घर में रह कर के बच्चे पढ़ने जाते हैं, तो गृहत्यागी जो लक्षण था वो बाधित हो रहा है। हमारा जो परिसर है वो ऐसा है की घर से निकल कर के बच्चा हमारे परिसर में आ कर रहेगा, तो यह पहला अंतर होगा।
दूसरे जो विद्यालय है उन्होंने समकक्षता वाली परीक्षाओं की मान्यता ले रखी है, और वो परीक्षा प्रणाली के माध्यम से पढ़ाते हैं। परीक्षाएं पास करना उनका मूल उद्देश्य है, परीक्षा पास करके बच्चा डिग्री तो ले लेगा क्योंकि डिग्री से ही आप को नौकरियां मिलेंगी परंतु हम ये नहीं चाहते हैं ।डिग्री तो ठीक है बच्चे की इच्छा है डिग्री ले, परीक्षा दे, कोई बाधा नहीं है, लेकिन परीक्षा की दृष्टि से हम पढ़ाना नहीं चाहते, हम ज्ञान की दृष्टि से, संस्कार और संस्कृति की दृष्टि से पढ़ाना चाहते हैं । हम परीक्षा से मना नहीं करेंगे, इसीलिए बच्चों के लिए एनआईओएस की परीक्षाएं रखेंगे, लेकिन परीक्षा मात्र उनका उद्देश्य न रह जाए, ज्ञान उनका उद्देश्य हो, ज्ञान के लिए पढ़ें, सक्षम बने, हमारा ध्यान इस पर है।
तीसरे जो गुरुकुल इस समय चल रहे हैं, उनमें पढ़ने की फीस ली जाती है, या तो बच्चे के अभिभावक से ली जाती है, या फिर सरकार से ग्रांट ले करके तब पढ़ाया जाता है। जगद्गुरुकुलम् में ये नहीं कर रहे हैं, हमने बच्चे को बच्चे के अभिभावक और सरकार को इससे मुक्त रखा है, हम समाज के सहयोग से बच्चे को निःशुल्क शिक्षा, भोजन, वस्त्र, चिकित्सा एवं निवास आदि दे रहे हैं।
चौथा जगद्गुरुकुलम् में यह व्यवस्था है कि यहाँ पर एक बच्चे के साथ एक वृद्ध भी रहेगा, बच्चा वृद्ध के पास जाएगा तो स्वाभाविक है की वृद्ध की कोई समस्या होंगी या बात कहनी होगी तो बच्चे से कह लेंगे और इसी तरह से बच्चे को कोई समस्या होगी तो उसको देखने के लिए एक वृद्ध होगा। बच्चा जो है वह वृद्ध का और वृद्ध बच्चे का, इस तरह से परस्पर एक दूसरे का ख्याल भी रखेंगे, परस्पर एक दूसरे से परामर्श करेंगे, परस्पर एक दूसरे के पूरक बनेंगे, तो वृद्ध और बालक साहस-शक्ति और बुद्धि-शक्ति दोनों को हम एक साथ मिला रहे हैं। ऐसा प्रयोग अभी तक अन्यत्र कहीं पर दिखाई नहीं दिया। तो यह एक अनोखा प्रयोग होगा, हम अनुभव के साथ उत्साह शक्ति को साथ रख रहे हैं।
पाँचवाँ बच्चे और वृद्ध को मिलकर एक गाय की सेवा और एक वृक्ष भी रोपित करना है, और ध्यान रखना है। इससे बच्चे में गौ-सेवा एवं प्रकृति के प्रति लगाव होगा, जो हमारी भारतीय परंपरा एवं संस्कृति से जोड़कर रखने में सहायक सिद्ध होगा।
इन दृष्टियों के अलावा एक बड़ी दृष्टि यह है कि, हमारे परिसर में एक साथ 10,000 दस हजार बच्चे रहेंगे, और वो एक साथ पढ़ेंगे, जो पूरे देश से होंगे तो ऐसी स्थिति में 10,000 दस हजार बच्चों का प्रवेश किसी भी गुरुकुल में आज की स्थिति में नहीं है। जब जगद्गुरुकुलम् में ऐसा होगा तो अपने आप ही यह अन्य गुरुकुलों से अलग हो गया। क्योंकि दस हजार बच्चे जब एक साथ रहेंगे, तो उनको एक दूसरे को समझने का अवसर मिलेगा, जहां पूरे देश के बच्चे होंगे। पूरे देश की संस्कृति, पूरे देश की भाषा, पूरे देश का ज्ञान, एक दूसरे से बच्चों में आदान-प्रदान होगा, तो जगद्गुरुकुलम् परिसर एक अलग तरह का परिसर होगा।
निश्चित रूप से जगद्गुरुकुलम् की तुलना किसी और गुरुकुल से नहीं की जा सकेगी, ये अपने आपमें एक अनोखा परिसर होगा। ये भी बात है की और जगह पर कहीं-कहीं हॉस्टल बनाए गए हैं, सीमित संख्या में वहाँ बच्चे रहते भी हैं, लेकिन वहाँ पर उनको वृद्धों का साथ नहीं मिलता तो बच्चे बच्चे एक ही उम्र के एक साथ हो जाते हैं तो उत्साह तो उनका रहता है लेकिन समझ कमजोर हो जाती है इसलिए उत्साह में बहुत कुछ करते हैं लेकिन समझ के अभाव में वो उनका किया हुआ उतना फलदायी नहीं होता जितना होना चाहिए तो
‘उपरोक्त समस्त दृष्टियों के कारण ही हमारा जगद्गुरुकुलम् श्रेष्ठतम है।‘