जगद्गुरुकुलम् प्रश्नोत्तरी

पालकों के अधिकार, दान एवं जिम्मेदारियों से सम्बंधित प्रश्न

जगद्गुरुकुलम् का उद्देश्य ये है कि भारत के बच्चों को भारतीय संस्कृति का न केवल पुस्तकीय ज्ञान दिया जाए बल्कि भारतीय संस्कृति के अनुसार का जीवन जीते हुए उनको भारतीय संस्कृति सिखाई जाय। इसका परिणाम यह होगा की वो भारतीय संस्कृति को पूरी तरह से आत्मसात कर सकेंगे और अगर उन्होंने आत्मसात कर लिया तो फिर आगे चल कर के जब वो बड़े होंगे समाज का नेतृत्व करेंगे तब वो दूसरे लोगों तक भी भारतीय संस्कृति को संप्रेषित कर सकेंगे । हम ये चाहते हैं कि जगद्गुरुकुलम् में पढ़ करके जो बच्चा निकले वो भारतीय संस्कृति का जीता जागता स्वरूप हो, ताकि वह जहाँ जाए, जहाँ चले, उठे-बैठे, एवं बोले तो लगे कि ये भारत का व्यक्ति है, और लोग उसको देख करके ही भारतीय संस्कृति को समझने लगें। यदि आवश्यकता पड़े और किसी के मन में कोई प्रश्न आए तो उसके समाधान के लिए उसके पास भारतीय संस्कृति की, सभ्यता की, धर्म की गहरी समझ होनी चाहिए, और ये सब इसी गुरुकुल के माध्यम से संभव हो सकेगा। जगद्गुरुकुलम् में जो बच्चे पढ़ेंगे उनको हमें भारतीय संस्कृति से ओतप्रोत बनाना है और ओतप्रोत बना करके समाज के सामने प्रस्तुत करना है। ताकि समाज के लोग भारतीय संस्कृति को देख करके समझ करके भारतीय संस्कृति के प्रति उन्मुख हो सकें।

हमारा मूल उद्देश्य यही है, की भारत में भारतीयता को बचाया जा सके, ऐसा ना हो जाये की कुछ और ही संस्कृति आ करके इसके ऊपर आरोपित हो जाए। अनेक देशों में ऐसा हो चुका है कि वहाँ के जो मूल निवासी थे, उनकी जो अपनी संस्कृति थी समाप्त हो चुकी है। जब बाहर के लोग वहाँ आए तो बाहर के लोगों ने वहाँ की संस्कृति के ऊपर अपना आवरण इतना गहरा चढ़ा दिया कि मूल संस्कृति को ही वो लोग भूल गए, भारत में भी यही खतरा आसन्न है, दिखाई दे रहा है कि धीरे-धीरे पाश्चात्यीकरण की प्रवृत्ति बढ़ रही है। कहीं ऐसा ना हो कि ये पाश्चात्यीकरण की प्रवृत्ति इतनी गहरी हो जाए कि भारत, भारतीयता सब इसी में खो कर रह जाए। इसलिए हम लोग समय रहते हमारे मूल संस्कृति के बीज को बचाने की चिंता कर रहे हैं, और इसीलिए इस जगद्गुरुकुलम् को स्थापित करने का संकल्प लिया गया है।

जगद्गुरुकुलम् समिति नहीं है, इसे विद्याश्री धर्मार्थ न्यास ट्रस्ट के अंतर्गत संचालित किया जा रहा है । विद्याश्री धर्मार्थ न्यास ट्रस्ट, उत्तराम्नाय ज्योतिष्पीठाधीश्वर जगद्गुरु शंकराचार्य अनंत श्री विभूषित पूज्यपाद स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती जी महाराज के अध्यक्षता में बना हुआ है, और अन्य सात सहयोगी भी इस न्यास के सदस्य हैं । इसमें एक सदस्य विदेश में जन्मे हैं, विदेश में ही पले बढे, लेकिन उसके बाद भारतीय संस्कृति का अध्ययन किया तत्पश्चात् उनको आकर्षण हुआ और यहीं आ करके उन्होंने अपने आपको भारतीय सिद्ध करते हुऐ निवास शुरू किया और अब भारतीय हो गए। उनके साथ जुड़ने और रहने से हम लोगों को इस बात का अनुभव हुआ कि भारतीय संस्कृति में रुचि किसी की भी हो सकती है, और भारतीय संस्कृति का मूल्य कितना अधिक है। हम लोग भारत में रह करके विदेश की तरफ देखते हैं, और विदेश के लोग हमारी तरफ देखते हैं, और उन्हें हमसे बड़ी आशा है।

भारत देश में शिक्षा की स्थिति यही है, कि संविधान की धारा 30 और 30A के अनुसार जो बहुसंख्यक हैं उनको विद्यालयों में धर्म की शिक्षा देने से मना कर दिया गया है, और जो अल्पसंख्यक हैं, उनके लिए छूट है। मुस्लिम समुदाय मदरसे में अपने धर्म की शिक्षा दे सकता है, ईसाई अपने कॉन्वेंट स्कूल में इसकी शिक्षा दे सकता है, हिंदू अपने विद्यालय में अपनी विद्याएँ नहीं पढ़ा सकता है, धर्म की शिक्षा नहीं दे सकता । लेकिन हमारे यहाँ दूसरी भी पद्धति है एक मुक्त विद्यालय की कल्पना भारत की सरकार ने की है, जिसमें विद्यालय में जाना नहीं पड़ता, बच्चे को अपने परिवेश में रहते हुए परीक्षाएं देना है। इसलिए जगद्गुरुकुलम् में पहले तो मुक्त विद्यालय पद्धति (एनआईओएस) को हम स्वीकार करेंगे, तत्पश्चात् हम एक अपनी पद्धति लायेंगें और सरकार से चाहेंगे कि भविष्य में सरकार के सामने जब हम प्रस्ताव रखे, तो जैसे बहुत सारे बोर्ड को सरकार ने मान्यता दी है, वैसे ही हमारे जगद्गुरुकुलम् को भी बोर्ड की मान्यता दे, उसी अनुसार फिर पढ़ाई होने लग जाएगी ।शीघ्र ही हम जगद्गुरुकुलम् का पाठ्यक्रम सरकार को प्रस्तुत करेंगे और सरकार उसको मान्यता प्रदान करेगी ऐसा हमको विश्वास है। परंतु जब तक जगद्गुरुकुलम् को भी बोर्ड की मान्यता नहीं मिलती है, तब तक एनआईओएस के माध्यम से बच्चे परीक्षा देंगे, और जगद्गुरुकुलम् परिसर में रहकर पढाई करेंगे ।

एक निश्चित संख्या कह पाना संभव नहीं है, परंतु गिने-चुने गुरुकुल ही देश में संचालित हो रहे हैं, और उसमें से अधिकतर वास्तव में हमारी प्राचीन गुरुकुल प्रणाली से दूर हो चुके हैं। प्राचीन गुरुकुल प्रणाली मूल रूप से यह थी, कि बच्चा घर का त्याग करके गुरुकुल में अध्ययन करता था। इसलिए हमारे यहाँ विद्यार्थियों के जो पांच लक्षण बताए है उसमें-
“काक चेष्टा, बको ध्यानं, स्वान निद्रा तथैव च । अल्पहारी, गृहत्यागी, विद्यार्थी पंच लक्षणं॥”
विद्यार्थी के जो पांच लक्षण बताए गए हैं, उनमें एक है ‘गृहत्यागी’। आजकल घर में रह कर के बच्चे पढ़ने जाते हैं, तो गृहत्यागी जो लक्षण था वो बाधित हो रहा है। हमारा जो परिसर है वो ऐसा है की घर से निकल कर के बच्चा हमारे परिसर में आ कर रहेगा, तो यह पहला अंतर होगा।

दूसरे जो विद्यालय है उन्होंने समकक्षता वाली परीक्षाओं की मान्यता ले रखी है, और वो परीक्षा प्रणाली के माध्यम से पढ़ाते हैं। परीक्षाएं पास करना उनका मूल उद्देश्य है, परीक्षा पास करके बच्चा डिग्री तो ले लेगा क्योंकि डिग्री से ही आप को नौकरियां मिलेंगी परंतु हम ये नहीं चाहते हैं ।डिग्री तो ठीक है बच्चे की इच्छा है डिग्री ले, परीक्षा दे, कोई बाधा नहीं है, लेकिन परीक्षा की दृष्टि से हम पढ़ाना नहीं चाहते, हम ज्ञान की दृष्टि से, संस्कार और संस्कृति की दृष्टि से पढ़ाना चाहते हैं । हम परीक्षा से मना नहीं करेंगे, इसीलिए बच्चों के लिए एनआईओएस की परीक्षाएं रखेंगे, लेकिन परीक्षा मात्र उनका उद्देश्य न रह जाए, ज्ञान उनका उद्देश्य हो, ज्ञान के लिए पढ़ें, सक्षम बने, हमारा ध्यान इस पर है।

तीसरे जो गुरुकुल इस समय चल रहे हैं, उनमें पढ़ने की फीस ली जाती है, या तो बच्चे के अभिभावक से ली जाती है, या फिर सरकार से ग्रांट ले करके तब पढ़ाया जाता है। जगद्गुरुकुलम् में ये नहीं कर रहे हैं, हमने बच्चे को बच्चे के अभिभावक और सरकार को इससे मुक्त रखा है, हम समाज के सहयोग से बच्चे को निःशुल्क शिक्षा, भोजन, वस्त्र, चिकित्सा एवं निवास आदि दे रहे हैं।

चौथा जगद्गुरुकुलम् में यह व्यवस्था है कि यहाँ पर एक बच्चे के साथ एक वृद्ध भी रहेगा, बच्चा वृद्ध के पास जाएगा तो स्वाभाविक है की वृद्ध की कोई समस्या होंगी या बात कहनी होगी तो बच्चे से कह लेंगे और इसी तरह से बच्चे को कोई समस्या होगी तो उसको देखने के लिए एक वृद्ध होगा। बच्चा जो है वह वृद्ध का और वृद्ध बच्चे का, इस तरह से परस्पर एक दूसरे का ख्याल भी रखेंगे, परस्पर एक दूसरे से परामर्श करेंगे, परस्पर एक दूसरे के पूरक बनेंगे, तो वृद्ध और बालक साहस-शक्ति और बुद्धि-शक्ति दोनों को हम एक साथ मिला रहे हैं। ऐसा प्रयोग अभी तक अन्यत्र कहीं पर दिखाई नहीं दिया। तो यह एक अनोखा प्रयोग होगा, हम अनुभव के साथ उत्साह शक्ति को साथ रख रहे हैं।

पाँचवाँ बच्चे और वृद्ध को मिलकर एक गाय की सेवा और एक वृक्ष भी रोपित करना है, और ध्यान रखना है। इससे बच्चे में गौ-सेवा एवं प्रकृति के प्रति लगाव होगा, जो हमारी भारतीय परंपरा एवं संस्कृति से जोड़कर रखने में सहायक सिद्ध होगा।

इन दृष्टियों के अलावा एक बड़ी दृष्टि यह है कि, हमारे परिसर में एक साथ 10,000 दस हजार बच्चे रहेंगे, और वो एक साथ पढ़ेंगे, जो पूरे देश से होंगे तो ऐसी स्थिति में 10,000 दस हजार बच्चों का प्रवेश किसी भी गुरुकुल में आज की स्थिति में नहीं है। जब जगद्गुरुकुलम् में ऐसा होगा तो अपने आप ही यह अन्य गुरुकुलों से अलग हो गया। क्योंकि दस हजार बच्चे जब एक साथ रहेंगे, तो उनको एक दूसरे को समझने का अवसर मिलेगा, जहां पूरे देश के बच्चे होंगे। पूरे देश की संस्कृति, पूरे देश की भाषा, पूरे देश का ज्ञान, एक दूसरे से बच्चों में आदान-प्रदान होगा, तो जगद्गुरुकुलम् परिसर एक अलग तरह का परिसर होगा।

निश्चित रूप से जगद्गुरुकुलम् की तुलना किसी और गुरुकुल से नहीं की जा सकेगी, ये अपने आपमें एक अनोखा परिसर होगा। ये भी बात है की और जगह पर कहीं-कहीं हॉस्टल बनाए गए हैं, सीमित संख्या में वहाँ बच्चे रहते भी हैं, लेकिन वहाँ पर उनको वृद्धों का साथ नहीं मिलता तो बच्चे बच्चे एक ही उम्र के एक साथ हो जाते हैं तो उत्साह तो उनका रहता है लेकिन समझ कमजोर हो जाती है इसलिए उत्साह में बहुत कुछ करते हैं लेकिन समझ के अभाव में वो उनका किया हुआ उतना फलदायी नहीं होता जितना होना चाहिए तो

‘उपरोक्त समस्त दृष्टियों के कारण ही हमारा जगद्गुरुकुलम् श्रेष्ठतम है।‘

वर्तमान में जगद्गुरुकुलम् का एक परिसर मध्यप्रदेश के परमहंसी गंगा आश्रम में तैयार हो चुका है, जहाँ पर 108 बच्चे रह रहे है, और पढ़ाई हो रही है। दूसरा गुरुकुल काशी में पहले से ही चल रहा है, उसमें भी 200-250 बच्चे हैं, और वो परम्परागत शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं। तीसरा परिसर 1008 बच्चों के लिए, जबलपुर में संकल्पित किया गया है, वहाँ पर आठ एकड़ जमीन दानदाता श्रीमान् धीरेन्द्र गर्ग और श्रीमती ममता गर्ग के द्वारा जगद्गुरुकुलम् के लिये प्रदान की गई है। जिसका नक्शा बन चुका है, भूमि पूजन हो चुका है, निर्माणकार्य शीघ्र ही आरंभ होने वाला है। तो इस तरह से हमारे तीन परिसर तो उपलब्ध हैं। इसके अलावा जो 10,000 बच्चों के लिये नया परिसर काशी के आस-पास बनाना है, उसके लिए भी भूमि देख रहे हैं, कई जगह पर भूमि देखी गई है जो भी भूमि अंतिम रूप से निर्णित होगी उसे सूचित किया जाएगा। जब तक यह बड़ा परिसर हमारा स्थापित नहीं हो जाता है, तब तक अभी हम लोग बड़े पैमाने पर भर्तियां नहीं ले सकते हैं, छोटे पैमाने पर भर्तियां जगद्गुरुकुलम् में हो ही रही हैं ।

हाँ दे सकता है । यदि बच्चे के सहायता के लिए किसी ने जगद्गुरुकुलम् को दान देकर सहयोग किया है, और वह चाहता है की उसके द्वारा चिन्हित बच्चा जगद्गुरुकुलम् में प्रविष्ट कर दिया जाए, तो यह उसको अधिकार है। क्योंकि हमें तो किसी ना किसी को पढ़ाना ही है, अगर सहयोग करने वाला व्यक्ति किसी के लिए सुझाव देता है, तो हम उसको अवश्य स्वीकार करेंगे।

हम प्राचीन परंपरा अनुसार सनातन धर्म की मूल रूप से शिक्षा देना चाहते हैं, और सनातन धर्म में केवल ब्राह्मण नहीं है । सनातन धर्म में ब्राह्मण इसलिए महत्वपूर्ण माना गया है, क्योंकि वे बाकी वर्णों को भी शिक्षा देते थे। इसलिए ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र ये चार हमारे ही वर्ण हैं, और चारों का अपना-अपना महत्व है, कोई बड़ा-छोटा नहीं है, बल्कि अपनी-अपनी जगह पर जिस समय जिसका मौका होता है वो बड़ा होता है। इस दृष्टि से चारों वर्ण के लोग जगद्गुरुकुलम् में पढ़ेंगे और उनको उनके वर्ण धर्म के अनुसार गुरुकुल में शिक्षा दी जाएगी।

बालिकाएं हमारे समाज का अभिन्न अंग हैं । बिना बालिका के किसी भी समाज की कल्पना ही नहीं की जा सकती, क्योंकि बच्चों को, पीढ़ियों को, आगे बढ़ाने का काम इन्हीं के द्वारा होता है। दूसरे जब हमारे परिवेश में रह करके बच्चा पढ़ेगा उसी परिवेश की दुल्हन भी उसके पास होनी चाहिए, वह कहाँ से आएगी ? और अगर दूसरी जगह से आएगी तो फिर उनका सामंजस्य कैसे बनेगा ? इन सब दृष्टियों को सामने रखते हुए हम लोगों ने यह निर्णय लिया है, की हम बच्चियों को भी जगद्गुरुकुलम् में पढ़ायेंगें। जहाँ तक वेद-वेदांग की शिक्षा की बात है, तो जिसका जैसा अधिकार शास्त्रों में वर्णित है, तदनुसार की शिक्षा दी जाएगी।

यही तो हमको सिखाना है, की हम एक दूसरे के पूरक हैं। यदि हम भी उसी विचारधारा को बढ़ावा देंगें जैसा कि पाश्चात्य देशों में है कि सभी (स्त्री-पुरुष) सब काम कर सकते हैं। किसी के लिए कोई वर्जना नहीं है, यह जो विदेशियों का दृष्टिकोण है, इसमें समस्या यह है कि जब हम सब काम कर लेते हैं, तो हमारे लिए कोई भी महत्वपूर्ण नहीं रह जाता। हम सोचते हैं की तुम्हारी क्या जरूरत है, हम कर लेंगे, आते हो तो आओ नहीं तो जाओ, यह सोच एक अहंकार हमारे मन में उत्पन्न करता है।

जब हम एक दूसरे पर निर्भर होते हैं, और जब भारतीय संस्कृति में आते हैं, तो यहाँ हम कार्य विभाजन कर रखे हैं। जैसे बड़े घरों में कार्य विभाजन होता है, की सब लोग मिलकर काम करते हैं, इसलिए सब अपना-अपना काम बांट लेते हैं । ऐसे ही हम चूँकि सनातनी बड़े परिवार के रूप में रहते आये हैं, इसलिए उन्होंने अपने कार्य विभाजन कर रखे हैं, और उसको शास्त्रीय स्वरूप भी दिया हुआ है, तो शास्त्रीय स्वरूप के अनुसार कार्य विभाजन करते हैं, और यही तो हमें बच्चों को सिखाना है, की ऐसा करके भी हम सुखी रह सकते हैं, ऐसा करके भी हम मिल-जुल कर रह सकते हैं।

समाज में जो यह धारणा बना दी गयी है की तुमको वंचित कर दिया गया है, और तुमको दो नंबर, तीन नंबर, चार नंबर का नागरिक माना गया है। एक नंबर के अमुक ही रहेंगे, तो यह हमारे लोगों में कुटिल धारणा सर्जित कर दी गई है, जिसके कारण हमारा सनातनी समाज विखंडित हो रहा है, इसी धारणा को तो हमको तोड़ना है। इसीलिए शास्त्रानुसार अधिकार का भी उद्देश्य हम पूरा करेंगे, और अधिकार के अनुसार बच्चों को उनके अधिकार क्षेत्र में जगद्गुरुकुलम् के माध्यम से योग्य बनाएंगे, और आगे चलकर ये लोग ही समाज का नेतृत्व करेंगें।

किसी भी जाति का मतलब हैं ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र, चारों वर्ण के वृद्ध या वृद्धा यहाँ आ सकते हैं और रह सकते हैं। हमारे शास्त्रों में सभी के कर्तव्य एवं अधिकार भी वर्णित हैं, लेकिन इन अधिकारों के कारण, कोई भेदभाव या प्रताड़ना नही होनी चाहिये और हम यह भी सुनिश्चित करेंगें की हमारे जगद्गुरुकुलम् परिसर में ना हो।

जो भी व्यक्ति जगद्गुरुकुलम् परिसर में रहना चाहेगा वह निर्धारित पारूप पर आवेदन करेगा, तत्पश्चात् संस्था के ज़िम्मेदार अधिकारी उनसे चर्चा करेंगे, नियम आदि समझायेंगें, और यदि आवेदक उन सभी नियमों से अपने आपको आबद्ध करता है, और सहमति देता है की वह सभी नियमों का पालन करते हुए परिसर में रहेंगे, तो हम उसका स्वागत करेंगे। अब इसके लिए जो जरूरी लिखापढ़ी आवश्यक होगी, वह की जाएगी। सामान्य रूप से उसका आवेदन संस्था की फाइल में रहेगा, नियमावली की छायाप्रति आवेदक के पास भी रहेंगी। समय समय पर जो भी उसका आवेदन एवं सुनवाई होंगी उसके रिकॉर्ड भी सुरक्षित रहेंगे, ताकि आवश्यकता पड़ने पर उसका अवलोकन किया जा सके।

नियम एवं शर्त कि नियमावली हम बना रहे हैं शीघ्र ही बन जाएगी।परंतु नियमावली की मूल भावना यही होगी की चरित्रवान बन करके ही जगद्गुरुकुलम् परिसर में रहना पडेगा, चरित्र के बारे में कोई भी कमजोरी यहाँ रहने वाले की नहीं होनी चाहिए, अगर है तो उसको दूर करना पड़ेगा तभी यहाँ रह सकता है, और उत्तम विचार पूर्वक यहाँ रह कर एक सात्विक जीवन बिताना होगा।

बिलकुल रहेंगे, क्योंकि हमें, चारों वर्णों को साथ ही तो रहना है। वेदों में वर्णित है कि ब्राह्मण मुख है, बाहु क्षत्रिय है, उर वैश्य है एवं पैर शूद्र है। हमारे सभी अंग भी तभी कार्य कर सकते हैं जब साथ-साथ रहते हैं, ये कट-कट कर अलग नहीं रहते हैं, आपस में जुड़े रहते हैं। इसलिए हमें भी चारों वर्णों को आपस में जुड़े रहना पडेगा अलग नहीं रह सकते। भोजन हाथ से होगा, लेकिन पैर भी वहाँ पालथी मारकर बैठा रहेगा, आप पैर काटकर बाहर नहीं रख देंगे, आप जूता बाहर रख सकते हैं । ठीक इसी तरह से अपने लोगों को भी करना और समझना पडेगा।

सेवा नहीं सहयोग, सहयोग तो किसी का भी हो सकता है, सेवा एक अलग क्रिया है और सहयोग एक अलग क्रिया है। ब्राह्मण बालक सहयोग अन्य वर्ण का बिलकुल कर सकता है, यह तो व्यवहारिक पक्ष है, यदि किसी के सेवा की आवश्यकता हुई तो उसे स्थिति परिस्थित अनुसार देखा और सुलझाया जायेगा।

जब कई गुरुकुल हो जाएंगे उस समय स्थानांतरण की पॉलिसी लागू की जाएगी, यदि कोई व्यक्ति चाहता है कि हम अपने अमुक जगह के गुरुकुल में ज्यादा सुरक्षित और व्यवस्थित महसूस करते हैं, और वहाँ हमारा स्थानांतरण कर दिया जाए तो अगर कोई समस्या न हुई तो स्थानांतरण की पॉलिसी के अनुसार उसका स्थानांतरण किया जाएगा।

बीमार होने पर या कुछ अनहोनी होने पर जो परिवार का दायित्व होता है वैसे ही जगद्गुरुकुलम् भी अपने दायित्व का निर्वहन करेगा। जैसे स्वस्थ रहने पर संस्था का यह दायित्व है कि समय से खिलाये-पिलाये, पढ़ाए-लिखाये, देख-रेख करें। जैसे माता-पिता की तरह गुरुकुल में रहने वाले बच्चों का, गौ-माता का, वृद्ध का किया जाएगा ठीक उसी तरह अस्वस्थ होने या मृत्यु होने पर भी जगद्गुरुकुलम् अपने दायित्व का पालन करेगा। घर में जैसे वृद्ध, बच्चे या गौ-माता (अपने घर में पाली हुई गाय के साथ) के साथ कोई अनहोनी हो जाए और जो व्यवहार हम करते हैं, वही व्यवहार गुरुकुल में उनके साथ किया जाएगा।

हमारे गुरुकुल में जैसे ही कोई व्यक्ति आएगा उसका बीमा कराया जाएगा। आजकल स्वास्थ्य का बीमा होता है, जितनी भी संभावनाएँ संभव होगीं सभी को कवर करते हुए बीमा किया जाएगा। बीमा की जो भी किस्त होती है, वो गुरुकुल जमा करता रहेगा। यदि किसी प्रकार की कोई समस्या होती है, तो बीमा की राशि से उसका इलाज होगा कोई दिक्कत नहीं होगी। यदि किसी परिस्थिति में बीमा की राशि उपलब्ध न हो पायी, तो गुरुकुल इतना सक्षम होगा कि जो हमारी देख-रेख में है, उसका देख-रेख हम घर परिवार जैसा करेंगे । अगर कोई वृद्ध बीमार है तो हम उसके बच्चे बन करके उसकी सेवा करेंगे।

दानदाता पर कोई आरोप नहीं लगा सकता, आरोप लगाएगा तो प्रबंध समिति पर लगाएगा। दानदाता तो सहयोगी है दान दे रहा है, दानदाता पर आक्षेप लगाने का कोई कारण ही नहीं हो सकता है, जिसे आवेदन और नियमावली में लिखा जाएगा। और यदि प्रबंध समिति पर कोई आरोप आयेगा, तो उसका निवारण निर्धारित प्रक्रिया के तहत किया जाएगा।

दानदाता चाहे तो दूसरा बच्चा अथवा वृद्ध भेज सकता है, और यदि नहीं भेजता है तो गुरुकुल स्वयं किसी और को उसकी जगह पे भर्ती कर लेगा तो संख्या पूर्ति हो जाएगी। जो चला गया है उसकी जगह पर दूसरा आ जाएगा।

जगद्गुरुकुलम् में 10,000 बच्चे होंगें, तो ज़ाहिर सी बात है की सभी व्यवस्थाएँ बनाकर रखनी पड़ेगी जैसे की स्वास्थ्य व्यवस्था हेतु डॉक्टर अपॉइंट करके रखने पड़ेंगे, ताकि स्वास्थ्य संबंधी सुविधा तत्काल बच्चे को दिया जा सके। यदि कहीं बाहर भी रेफर करने की जरूरत पड़ती है, तो उसको तुरंत किसी अन्य हॉस्पिटल में रेफर भी किया जाएगा। जगद्गुरुकुलम् का अभिभावकीय दायित्व है, क्योंकि गुरुकुल ही उसका प्रथम अभिभावक है। बच्चा जब तक गुरुकुल के पास है, तो गुरुकुल अभिभावक के दायित्व से उसको सभी आवश्यक सुविधाएँ एवं सुरक्षा प्रदान करेगा।

दूसरी समस्या खान-पान की आ सकती है, या फिर बच्चों की आपस में लड़ाई-झगड़े हो सकते हैं या चोरी कर सकते हैं।ऐसी सभी परिस्थितियों में अनुशासनात्मक कार्यवाही निर्धारित प्रक्रिया के तहत की जाएगी। यदि किसी के द्वारा अनुशासन तोड़ा जाता है, या तोड़ने का प्रयास किया जाता है तो समझाइश दिया जाएगा और यदि फिर भी नहीं मानेगा तो परिसर से निष्कासन या आवश्यकतानुसार दंडात्मक कार्यवाही भी की जायेगी।

सभी संभावित समस्याओं की निराकरण प्रक्रिया जगद्गुरुकुलम् में स्थापित किया जाएगा ताकि किसी को कोई असुविधा या समस्या ना हो।

चूँकि दान राशि नगद में 2000/- रुपये से अधिक नहीं लिया सकता है, क्योंकि आयकर अधिनियम में मान्य नहीं होगा। इसलिए यदि दान राशि 2000/- रुपये से अधिक है तो केवल चेक/आरटीजीएस पेमेंट या अन्य ऑनलाइन भुगतान माध्यम जैसे की गूगलपे, पेटीएम आदि माध्यम से ही लिया जायेगा।

यदि कोई दानदाता किसी एक बच्चे के लिए मात्र एक माह का खर्च, जो की लगभग 3000/- रुपये मात्र होते हैं, उसे देना चाहता है, तो दे सकता है। परंतु उसे तब तक किसी बच्चे, वृद्ध, गाय एवं वृक्ष को भेजने का अधिकार प्राप्त नहीं होगा जब तक की एक बच्चे के पूरे 12 वर्ष के संपूर्ण खर्च हेतु दान राशि जमा नहीं हो जाती है। जब तक सम्पूर्ण राशि कई लोग मिल के एक बच्चे के लायक राशि इकट्ठा नहीं कर देंगे तक इस राशि को अलग खाते में रखा जाएगा, और जैसे ही संपूर्ण राशि प्राप्त हो जाती है, तुरंत एक और बच्चे को प्रवेश मिल जाएगा, और बिना किसी व्यवधान के उसकी शिक्षा 12 वर्षों तक अनवरत चलती रहेगी।

12 वर्ष में एक बच्चा जगद्गुरुकुलम् से अपना अध्ययन पूर्ण कर लेगा और जगद्गुरुकुलम् में उस बच्चे के साथ जो वृद्ध रहेंगें उन्हें दूसरे बच्चे के साथ रख दिया जाएगा। क्योंकि जैसे ही एक बच्चा निकलेगा वैसे ही दूसरे बच्चे का प्रवेश हो जाएगा और दानदाता ने जो दान राशि उस बच्चे के लिये दिया था वह भी समाप्त हो जाएगा। पालक के रूप में दानदाता की ज़िम्मेदारी समाप्त हो जाएगी परंतु जगद्गुरुकुलम् के सहयोगी के रूप में उसको सदैव मान्यता मिलती रहेगी। यदि दानदाता पुनः किसी बच्चे का पालक बनना चाहता है, तो उसे पुनः दूसरे बच्चे के पढ़ाई खर्च हेतु उस समय जो भी राशि निर्धारित की जाएगी उसकी व्यवस्था करनी पड़ेगी ।

स्तंभ तो जब तक गुरुकुल रहेगा तब तक रहेंगें, कभी भी हटाया या मिटाया नहीं जाएगा। परंतु स्तंभ सिर्फ दश हज़ारी मुख्य परिसर में ही बनेगा, जहां 10000 बच्चे एक साथ पढ़ेंगें, और सिर्फ़ प्रथम 10000 दानदाताओं का ही रहेगा, जो दानदाता उसके बाद दान देंगें उनके नाम का स्तंभ नहीं बन पायेगा। क्योंकि 10000 के बाद जो आयेंगे उनके लिए स्तंभ की जगह दीवार पर नामपट्टिका लगेगी। क्योंकि जो प्रथम 10000 दानदाता जगद्गुरुकुलम् को दान कर रहे हैं, उनका विशेष सहयोग माना जाएगा और अधिक पुण्य के भागीदार होंगें, उसके बाद तो नाम पट्टिका के लिए एक दीवार बना दी जाएगी, और उसी पर नये दान दाताओं के नाम लिखे जाएंगे। इसलिए प्रथम 10000 को मौका है, की जब तक जगद्गुरुकुलम् रहेगा तब तक के लिये उनका और उनके परिवार ना नाम अमर हो जाएगा। हम ऐसा स्तंभ बनाएंगे ताकि वह हज़ारों वर्ष तक रहे और इतिहास का अंग बने। क्योंकि प्रथम दश हज़ार दानदाताओं के सहयोग को कभी भी भुलाया नहीं जाएगा।

यदि दानदाता चाहता है कि उनके द्वारा पोषित बच्चा, वृद्ध, गौमाता उसके द्वारा चिह्नित परिसर में रहें, और यदि उस परिसर में जगह ख़ाली है, तो ऐसा किया जा सकता है, और दानदाता द्वारा पोषित बच्चा, वृद्ध, गौमाता यदि किसी अन्य परिसर में पहले से निवासरत हैं, तो उन्हें स्थांतरित भी किया जा सकता है। परंतु जो 10000 स्तंभ बनाया जाएगा वह सिर्फ़ मुख्य परिसर (जहां पर 10000 बच्चों का परिसर बनेगा) में ही बनेंगें, अन्यत्र कहीं नहीं बनेगा। बाक़ी सभी अन्य परिसर में दीवार पर पट्टिका ही लगायी जाएँगीं।

चूँकि यह संस्था भी पंजीकृत संस्था है, तथा आयकर के अन्तर्गत वर्णित प्रावधानों के अनुसार ही संचालित हो रही है, और आयकर की धारा में दिये गये प्रावधानों के अनुसार जो छूट मिलती है, वही यहाँ भी मिलेगी। इसलिए जिस समय जो नियमानुसार छूट होगा वह मिलेगा, क्योंकि समय-समय पर इसमें बदलाव भी होता रहता है। इसलिए पहले से कुछ बोलना या सुनिश्चित कर देना उचित नहीं होगा।

यदि दानदाता बैंक के माध्यम से ऑनलाइन ट्रांसफर करता है, तो संस्था के खाते में राशि आते ही उसे तत्काल ऑनलाइन रसीद संस्था से मिल जाएगी। यदि कैश में दिया है तो तत्काल दान का विवरण ऑनलाइन हमारे संदेष्टा द्वारा प्रविष्टि की जाएगी और दानदाता को इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से रसीद मिल जाएगी। इसके अलावा हमारी संस्था की तरफ़ से एक धन्यवाद पत्र भी दानदाता को प्रेषित किया जाएगा। जब जगद्गुरुकुलम् का वार्षिकोत्सव होगा उस वार्षिकोत्सव में हम पालकों को आमंत्रित करेंगे और उसमें दानदाता या उसके प्रतिनिधि का सम्मान भी किया जाएगा ।

संस्था में रह रहे प्रत्येक दानदाता द्वारा पोषित बालक, वृद्ध, वृक्ष और गौ-माता का एक यूनिक कोड (नंबर) होगा, जो दानदाता को सूचित कर दिया जाएगा। गाय के कान में टैग लगा रहेगा, बच्चे और वृद्ध के कार्ड में भी नंबर लिखा रहेगा, इसके अलावा वृक्ष के पास भी टैग लगा रहेगा और इस पर भी नंबर लिखा ही रहेगा, और वही नंबर दानदाता के स्तंभ पर भी रहेगा। इसलिए पालक को मात्र नंबर से ही तुरंत पता चल जाएगा की उनके द्वारा पोषित बालक, वृद्ध, वृक्ष और गौ-माता कौन हैं।

हम ऐसा नियम बना रहे हैं, की वर्ष में कम से कम 3 दिन के लिए प्रत्येक पालक या उसके प्रतिनिधि को आना ही होगा, ताकि संस्था में चल रहे कार्यों को और पालक द्वारा पोषित बालक, वृद्ध, वृक्ष और गौ-माता को देखा और उनसे मुलाक़ात किया जा सके। इसके लिए हम ऐसी व्यवस्था बनायेंगे की लोग बैच में आते रहेंगें, और उनके लिये भोजन आदि की व्यवस्था भी संस्था द्वारा व्यवस्थित तरीक़े से किया जाएगा। पूर्व निर्धारित समय सारिणी अनुसार पूरे वर्ष, यह कार्यक्रम चलता रहेगा और संस्था की तरफ़ से पालकों को सूचित करने हेतु हम आमंत्रण पत्र भी भेजेंगे।

संस्था तो चाहेगी की दान एकमुश्त जमा हो जाये ताकि बच्चे को प्रवेश दिया जा सके, लेकिन यदि दानदाता एकमुश्त राशि जमा नहीं कर पा रहे हैं/नहीं कर सकते हैं, तो अपनी सुविधानुसार किश्त में भी जमा कर सकते हैं। परंतु जब तक निर्धारित पूरी राशि जमा नहीं हो जाती है तब तक बच्चे को प्रवेश नहीं मिल पाएगा। दानदाता द्वारा जमा करायी गई किश्त राशि खाते में जमा होती रहेगी, जैसे ही अंतिम किश्त दानदाता जमा करायेंगें, उन्हें पालक बनने का अधिकार प्राप्त हो जाएगा।

अधोसंरचना से सम्बंधित प्रश्न:

अलग कमरा नहीं बनाएंगे, हॉल का पार्टीशन कर केबिन बनाया जाएगा। प्रत्येक केबिन में एक बच्चा और एक वृद्ध रहेंगें। ऐसी व्यस्था रहेगी कि केबिन में सीधे उनको कोई ना देख सके, परंतु केबिन के पास खड़े होकर उन्हें देखा जा सके, ताकि निगरानी रखी जा सके। साथ-साथ यह भी ध्यान रखा जाएगा कि उठने-बैठने या सोते समय उन्हें कोई दिक़्क़त नहीं होनी चाहिए। प्रत्येक केबिन से लगा बाथरूम रहेगा, ताकि स्वच्छता में कोई कमी ना हो। पूरा परिसर सीसीटीवी कैमरे की निगरानी में रहेगा ताकि कोई भी ऐसी गतिविधि जो अवांछित हो उस पर निगरानी रखी जा सके, और त्वरित उस पर कार्यवाही कर निवारण किया जा सके।

लगभग 15-20 विद्यार्थियों की व्यवस्था की जाएगी, आवश्यकतानुसार परिवर्तन भी किया जा सकता है।

चूँकि अभी दो परिसर में ही अध्यापन कार्य चल रहा है, परिसर में किसी भी बाहरी व्यक्ति को कहीं भी जाने की अनुमति नहीं है, इसलिए संस्था के अधिकारियों से स्वीकृति लेकर परिसर देखा जा सकता है।

शिक्षा एवं व्यवस्था से सम्बंधित प्रश्न:

आधुनिक शिक्षा की पढ़ाई का परिणाम हम देख रहे हैं, कि बच्चे माता-पिता और परिवार के हाथ से निकलते जा रहे है। जब बुढ़ापे में आपके पास अकेलापन रहता है, तो आपके बच्चे तो हैं परंतु बच्चों का कोई सुख आपको नहीं मिल रहा है। आपके बच्चे बड़े पद पर तो नियुक्त हो रहे हैं, साफ-सुथरे, अच्छे रहन-सहन से तो रहने लगते हैं, यहाँ तक कि विदेश भी जा रहे है, जिसे आप बहुत बड़ी उपलब्धि और सौभाग्य समझ रहे हैं, लेकिन आप के लिए यह वास्तव में उपलब्धि या सौभाग्य नहीं है।

आपके बच्चे के साथ आपका सामंजस्य नहीं हो पाता है, कई बार तो सुनने में आता है, और हमने फिल्मों में देखा है, कि बच्चा कलेक्टर हो गया, और अपने मित्रों से परिचय करवाता है की ये हमारे नौकर हैं। ये सब हमारी आधुनिक/पाश्चात्य शिक्षा का ही परिणाम है, इसलिए आधुनिक शिक्षा के मामले में हमें कुछ कहने और बताने की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि समाज इसको भोग रहा है।

यदि आप चाहते हो कि -
प्रातकाल उठि कै रघुनाथा । मातु पिता गुरु नावहिं माथा । यदि आप और समाज बच्चों से ऐसे आचरण की अपेक्षा रखते हैं कि बच्चा पिता की आज्ञा का अनुसरण करे, अपने भाई-बहन के लिए कुछ भी करने को तैयार हो जाए, सभी से प्रेम बना के रखे, तो आपको अपने बच्चों को गुरुकुल में भेजना ही होगा। हम ये कदापि नहीं कहते या कहना चाहते कि आप आधुनिक शिक्षा बच्चों को ना दे, जिसे देना है वह दें, बस हम आपके और समाज के पास वैकल्पिक व्यवस्था बनाना चाहते हैं।

बच्चा वेद शास्त्र पढ़ेगा, जानेगा तो बच्चे के व्यक्तित्व का पूर्ण विकास होगा, और यहाँ वो सब पढ़ाया जाएगा। ताकि बच्चा आज की दुनिया से कदमताल मिला कर चल सके। इसके लिए यहाँ आधुनिक विषय भी पढ़ाए जाएँगें, ताकि वो अपने को पीछे न समझे आज की दुनिया के बच्चों के साथ अगर उसको बैठा दिया जाए तो बराबरी से बात कर सके, नज़र से नज़र मिलाकर के बात कर सके, यदि कोई उससे अंग्रेज़ी मैं बात करता है, तो बिना संकोच के अंग्रेजी में भी बात कर सके।

अभी वर्तमान में 8 से 14 वर्ष की उम्र वाले बच्चों को लिया जा रहा है, ताकि बच्चा स्वयं से कपड़ा पहनना, स्नान करना, स्वयं भोजन करना जानता हो और कर सकता हो। परंतु जब हमारा गुरुकुल पूर्ण रूप से संचालित होने लग जाएगा तब तो हम तीन वर्ष के बच्चों को भी प्रवेश कर लेंगे, क्योंकि अक्षरारंभ तो तीन वर्ष में ही करते हैं। सामान्य रूप से पांच वर्ष से आठ वर्ष का बच्चा अपना काम करने लगता है, परंतु जब हमारे परिसर में सभी सुविधाएँ हो जायेंगीं और कोई माता-पिता चाहते हैं, कि बच्चे को तीन वर्ष में ही प्रवेश मिल जाये, तो संस्था प्रवेश देगी।

चूँकि ‘जगद्गुरुकुलम्' में प्रवेश की आयु सीमा 3 वर्ष (अक्षरारम्भ) से 8 वर्ष तक की निर्धारित होगी, इसलिए जो बच्चे 3 वर्ष की आयु में प्रवेश लेंगें उन्हें 17 वर्षो तक एवं जो बच्चे 8 वर्ष की आयु में प्रवेश लेंगें उन्हें 12 वर्ष तक ‘जगद्गुरुकुलम्' में रहकर निःशुल्क (भोजन, वस्त्र, स्वास्थ्य एवं निवास सुविधाओं के साथ) शिक्षित किया जायेगा।

साधना-योग-व्यायाम भी अनिवार्य है और वर्तमान में भी जगद्गुरुकुलम् में दिया जा रहा है, बच्चे को संध्या करना, और सूर्य नमस्कार अनिवार्य है। योगाभ्यास और खेलकूद भी अनिवार्य है, इससे शारीरिक व्यायाम के साथ-साथ बौद्धिक व्यायाम भी होता है।

साधना-योग-व्यायाम भी अनिवार्य है और वर्तमान में भी जगद्गुरुकुलम् में दिया जा रहा है, बच्चे को संध्या करना, और सूर्य नमस्कार अनिवार्य है। योगाभ्यास और खेलकूद भी अनिवार्य है, इससे शारीरिक व्यायाम के साथ-साथ बौद्धिक व्यायाम भी होता है।

हाँ, जगद्गुरुकुलम् में शास्त्र के शस्त्र विधाएँ भी सिखायी जायेंगीं, यहाँ जब बच्चा यजुर्वेद पढ़ेगा तो साथ-साथ धनुर्वेद भी पड़ेगा।

हाँ, दिया जायेगा ताकि वो आधुनिक युग में में सभी के साथ कदम से कदम मिला का चल सके, लेकिन जगद्गुरुकुलम् में प्रयास वैदिक शिक्षा पर अधिक रहेगा। आधुनिक शिक्षा इसलिए देंगे की यहाँ पढ़ने वाला बच्चा आधुनिक जमाने में अपने आप को पीछे ना महसूस करें, इसके लिए इसे भी पढ़ायेंगें।

जगद्गुरुकुलम् छात्रों से भविष्य से सम्बंधित प्रश्न:

आजीविका के लिए अभी वर्तमान में जगद्गुरुकुलम् ने 35 क्षेत्र का चुनाव किया गया है, जिसमें बच्चों को पढ़ाया सिखाया जाएगा। जगद्गुरुकुलम् से शिक्षा प्राप्त किया हुआ बच्चा 35 क्षेत्रों में अपनी आजीविका का चुनाव कर सकता है, और उसमें वह सफल भी रहेगा। क्योंकि यहाँ मात्र किताबी ज्ञान नहीं, बल्कि उस विषय से संबंधित व्यावहारिक ज्ञान भी दिया जाएगा।

हाँ, जैसा कि उपरोक्त पहले ही बताया गया है कि अभी वर्तमान में कुल 35 क्षेत्र में से बच्चा किसी भी क्षेत्र का चुनाव कर सकता है, जिसमें से एक प्रशासनिक क्षेत्र भी है, चिकित्सा का क्षेत्र है, अभियंता का क्षेत्र है, व्यापारी भी बन सकता है, पुरोहित व धर्माचार्य भी बन सकता है। बच्चे की रुचि के अनुसार वह किसी भी क्षेत्र का चुनाव कर पाएगा।

जगद्गुरुकुलम् में पढ़ने वाले बच्चे का जीवन पवित्रता का जीवन रहेगा, शुद्धता का जीवन रहेगा, और यहाँ उसे भारतीय तौर तरीके सिखाएंगे, जो की सर्वश्रेष्ठ तौर तरीका है। भारतीय तौर तरीका ही अपना करके ही हम लोग आगे आए हैं, लेकिन उसके पीछे जो गौरव है, ज्ञान है, वह आजकल पाश्चात्य शिक्षा प्रणाली में नहीं दी जा रही है, उसे विलुप्त कर दिया गया है। जगद्गुरुकुलम् के माध्यम से हम उस गौरव को, ज्ञान को, पुनर्जागृति करेंगे। शिक्षा एवं परिधान हमारे संस्कार, प्रकृति और संस्कृति के हिसाब से होनी चाहिये, उदाहरण के लिए जहाँ ठंड अधिक है, वहाँ का परिधान कोट, पैंट एवं टाई हो सकता है, परंतु जहां गर्मी है, वहाँ का कदापि नहीं। जैसा कि पहले भी इस बात को बताया जा चुका है, की जब जगद्गुरुकुलम् का बच्चा चले, बैठे, उठे, बोले एवं परिधान ऐसा होना चाहिए, लगना चाहिए की वह भारतीय है।

हाँ, विशेषरूप से अभिभावक एवं जगद्गुरुकुलम् में पढ़ रहे बच्चों के माता-पिता के लिए किया जाएगा, क्योंकि बच्चा जब हमारे यहाँ से छुट्टी ले करके 15 दिन या महीने भर के लिए अपने घर जाता है, तो उस समय यदि घर पर उसके अभिभावक या माता-पिता संस्कारी नहीं होंगे, तो दोनों के बीच में सामंजस्य स्थापित नहीं होगा, बच्चा कुछ करेगा, कहेगा, और अभिभावक या माता-पिता कुछ और ही करेंगे एवं कहेंगे।

इस लिए अभिभावकों को प्रशिक्षण देना आवश्यक है, और जगद्गुरुकुलम् का प्रयास होगा की अभिभावकों के लिए कार्यशाला आयोजित किया जाये ताकि उनको भी भारतीय संस्कृति एवं संस्कार का ज्ञान दिया जा सके ताकि बच्चा जब घर उनके पास जाये तो वो भी उसी सोच एवं समझ के अनुसार व्यवहार करें, जिससे बच्चे को अलग माहौल ना लगे और दिक्कत ना हो।

उदाहरण के तौर पर संस्था द्वारा वर्तमान में एक नया प्रयास किया गया जो की हम लोग इतने वर्षों से विद्यालय चला रहे हैं, परंतु कभी ये विचार नहीं आया था। इस बार जो बच्चे घर गये, उनके लिए घर पर भी गृहकार्य करने हेतु कुछ आवश्यक निर्देश दिया गया। उनसे कहा गया कि जैसी दिनचर्या यहाँ परिसर में रहते हुए करते हैं, ठीक उसी प्रकार घर पर भी रहते हुए सुबह उठना, सूर्य नमस्कार करना, योग साधना करना, स्नान करना, एवं संध्या करना, बच्चों को घर पर भी ठीक उसी प्रकार और समय पर करना है, और प्रतिदिन वॉट्सऐप के माध्यम से फोटोग्राफ एवं विडिओ बच्चे को यहाँ विद्यालय में भेजना है।

उपरोक्त कार्य करने के पश्चात ही बच्चा घर पर बाक़ी कार्य अपने इच्छा अनुसार कर सकता है, और इसके बाद दिन भर के लिए हम कुछ नहीं कहेंगे, लेकिन उपरोक्त कार्य सुबह एक-डेढ़ घंटे का कार्यक्रम उसे करना ही है।

इसका प्रभाव ऐसा हुआ की बच्चे घर गये और घर पर भी उन्होंने उपरोक्त कार्य अनवरत किया, जैसा की परिसर में करते थे, तो प्रतिदिन हमारे पास हजारों फोटो/वीडियो आने लगे और परिणाम ये हुआ कि अब नये बच्चों की हमारे विद्यालय में भीड़ लग गई है। क्योंकि जब गांव के लोगों ने देखा की छत पर/घर के बाहर बच्चा सूर्य नमस्कार, संध्या वंदन, एवं योगासन कर रहा है, तो आस पास के अन्य अभिभावकों एवं बच्चों को लगा की उन्हें भी करना चाहिए, और सीखने के लिए उन्हें भी जगद्गुरुकुलम में पढ़ने आना चाहिए। इस एक छोटे से प्रयास से जगद्गुरुकुलम् का माहौल ही बदल गया ।