एक समय ऐसा भी था जब भारत को पूरे विश्व का 'जगद्गुरु' कहा जाता था। यहां पर विश्व के सबसे पुराने व विशाल विश्वविद्यालय थे, जिसमें मुख्य रूप से ( तक्षशिला, नालंदा, विक्रमशिला, वल्लभी, एवं पुष्पगिरी विश्वविद्यालय, जहां पर पूरे विश्व के छात्र शिक्षा ग्रहण करते थे। भारत में चौथी शताब्दी से लेकर छठी शताब्दी तक ऐसे कई विश्वविद्यालय बने जो आज भी भारत के इतिहास में दर्ज हैं। इन विश्वविद्यालयों में वैदिक शिक्षा के साथ अन्य विषयों की भी पढ़ाई व शोध होता था।
भारत में गुरुकुल का इतिहास
इसी क्रम में वर्तमान ज्योतिष्पीठाधीश्वर 'जगद्गुरु' शंकराचार्य स्वामीश्री: अविमुक्तेश्वरानंद: सरस्वती '1008' ने दानवीर मातृभक्त श्री धीरेन्द्र गर्ग-श्रीमती ममता गर्ग जी से लगभग 8 एकड़ भूमि प्राप्त कर उसमें 1008 बच्चों के गुरुकुल के निर्माणार्थ शिलान्यास कर दिया है और निर्माण कार्य जारी है।
जबलपुर में 1008 बच्चों के 'जगद्गुरुकुलम्' का हुआ शिलान्यास|
अनेक महानुभाव का यह चिंतन निष्कर्ष है की जिन गुरुकुलों के टूटने से भारत का गौरव खंडित हुआ है, उन्ही की पुनर्स्थापना से उसके परावर्तन की सम्भावना है। अतः गुरुकुलों का पुनर्जीवन आवश्यक है।
गुरुकुल ही लौटाएगा भारत का विश्वगुरु-गौरव
दस हजार बच्चों का परिसर स्थापित करने के लिए अनेक स्थानों पर भूमि का अन्वेषण जारी है। भगवत्कृपा और पूज्य महराजश्री के आशीर्वाद से वह भी शीघ्र ही प्राप्त होगा ऐसा हमारा विश्वास है ।
दस हजारी परिसर की भी खोज जारी है
कुलपति शब्द को उसका सच्चा अर्थ प्रदान करने के लिए दस हज़ार बच्चों का गुरुकुल स्थापित करने का प्रण ब्रह्मलीन शंकराचार्य जी महाराज ने लिया। किसी और पर ज़िम्मेदारी न डालते हुए स्वयं अपने समय के कुलपति 'युग कुलपति' बने और विक्रम संवत 2076 माघ शुक्ल पक्ष की अचला सप्तमी को उन्होंने अस्वस्थ रहते हुए भी दस हज़ार बच्चों के गुरुकुल का 'जगद्गुरुकुलम्' के नाम से शुभारम्भ किया। इसे उनकी अंतिम इच्छा के रूप में भी जाना जा सकता है।
ब्रह्मलीन शंकराचार्य जी बने युग कुलपति
एक बच्चे की पढाई आदि का सब खर्च रु. 1,19,334/- एक वर्ष के लिए आँका गया है। 12 वर्षों के लिए एक छात्र का खर्च रु. 14,32,000/- होता है। यह राशि देकर आप ‘जगद्-गुरु-कुलम्' के एक स्तम्भ बन सकते हैं। देर न कीजिये, केवल दस हजार लोगों को ही यह अवसर मिलना है। नाम पीछे न रह जाए, यह भी ध्यान रखना है। जो जितना पहले आएगा उसका पुण्य और सहयोग कुछ अधिक ही आँका जाएगा।
याद रहे ! ‘जगद्-गुरु-कुलम्' के दस हजार स्तम्भों में से एक स्तम्भ पर आपकी कीर्ति का उल्लेख होगा, जो पीढ़ियों को प्रेरणा प्रदान करता रहेगा।
आप बन सकते हैं ‘जगद्-गुरु-कुलम्' के स्तम्भ
गुरुकुलों को जागृत किये बिना भारत के पूर्व गौरव को वापस नहीं लाया जा सकता। इस तथ्य-सत्य को ब्रह्मलीन जगद्गुरु जी पहचान गए थे। इसीलिए उन्होंने देश में अनेक गुरुकुल स्थापित किये। उन गुरुकुलों से पढ़कर निकले छात्र देश और समाज के लिए योगदान दे भी रहे हैं।
याद रहे ! ‘जगद्-गुरु-कुलम्' के दस हजार स्तम्भों में से एक स्तम्भ पर आपकी कीर्ति का उल्लेख होगा, जो पीढ़ियों को प्रेरणा प्रदान करता रहेगा।